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ग़ज़ल
लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा
पर्दा खुल जाएगा हर पर्दा कताँ हो जाएगा
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
नफ़स की आमद-ओ-शुद शे'र हम दीवान बन जाते
ब-नज़्म-ए-ज़िंदगानी तुम अगर उन्वान बन जाते
शौक़ असर रामपुरी
ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-हस्ती ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दिल
कितने उन्वान मिले हैं मिरे अफ़्साने को
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
कुछ न कुछ इश्क़ की तासीर का इक़रार तो है
उस का इल्ज़ाम-ए-तग़ाफ़ुल पे कुछ इंकार तो है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
इस वास्ते दामन चाक किया शायद ये जुनूँ काम आ जाए
दीवाना समझ कर ही उन के होंटों पे मिरा नाम आ जाए
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
सुनते हैं फिर छुप छुप उन के घर में आते जाते हो
'इंशा' साहब नाहक़ जी को वहशत में उलझाते हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं